Monday, August 19, 2013

BETET : पंचायतों में फंसे गुरुजी के नियुक्ति पत्र


BETET : पंचायतों में फंसे गुरुजी के नियुक्ति पत्र

   STET  / BETET / Bihar Teacher Recruitment / Recruitment   
 बक्सर : प्रारंभिक शिक्षकों के नियोजन की प्रक्रिया का अंत जिले में अभी नहीं हुआ है। प्रक्रिया काफी दिनों से चल रही है और यह अभी और खिचेगी इससे इन्कार नहीं किया जा सकता। अब तक जिले के 11 प्रखंडों में 9 प्रखंडों की सूची को विभाग ने अनुमोदित कर नियोजन इकाइयों को लौटा दिया है। अब इनसे संबंधित नियुक्ति पत्र नियोजन इकाइयों को बांटना है।

विभागीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले के विभिन्न प्रारंभिक विद्यालयों में कुल 3093 शिक्षकों की बहाली होनी है। इसको लेकर विभागीय कवायद चल रही है। बताया जाता है कि इसके तहत अंतिम सूची का अनुमोदन विभाग द्वारा करने के उपरांत नियोजन इकाइयों द्वारा शिक्षक अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र थमाया जायेगा। हालांकि, यह काम काफी धीमी गति से चल रहा है। नियोजन प्रभारी ओमप्रकाश की मानें तो जिले के 11 में नौ प्रखंडों की 118 पंचायतों की सूची को अनुमोदन कर नियोजन इकाइयों को भेज दिया गया है। दो प्रखंडो सिमरी व नावानगर की सूची पर भी काम चल रहा है। एक दो दिन में उसका अनुमोदन भी हो जायेगा। उन्होंने बताया कि चौसा से नियुक्ति पत्र वितरण करने की सूचना भी प्राप्त हुई है। हालांकि, सूत्र बताते हैं कि वहां भी अभी सभी को नियुक्ति पत्र नहीं दिये जा सके हैं। विभागीय अधिकारी ने बताया कि बहुत जल्द नियोजन का काम पूरा कर लिया जायेगा। देर के बाबत पूछे जाने पर अधिकारी ने बताया कि नियोजन इकाइयों की लापरवाही की वजह से इसमें विलंब हुआ

News Sabhaar : Jagran ( 19.8.13)

BETET / STET : लक्ष्य के विरुद्ध मात्र सात फीसद शिक्षकों ने किया योगदान


BETET / STET : लक्ष्य के विरुद्ध मात्र सात फीसद शिक्षकों ने किया योगदान

STET  / BETET / Bihar Teacher Recruitment / Recruitment   

 बिहारशरीफ : जिले में प्रारंभिक शिक्षक नियोजन की स्थिति काफी लचर रही है।

 नियोजन की प्रक्रिया दिसंबर में शुरू हुई थी। तब से लेकर नियोजन संपन्न करने की अंतिम तिथियां लगातार बढ़ती रहीं। सरकार ने अप्रैल में नियोजन पूरी कर लेने का दावा किया था लेकिन जुलाई खत्म होने जा रहा है और फिर भी नियोजन लक्ष्य के विरुद्ध मात्र सात फीसद ने हीं योगदान किया है। जाहिर है अगर यही हालात रहे तो अगले नियोजन प्रक्रिया संपन्न होने में अभी एक दो वर्ष और लग सकते हैं।

 इससे सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। जिले में नियोजन के कुल लक्ष्य के विरुद्ध अब तक मात्र सात फीसद शिक्षकों ने ही योगदान किया है। आधिकारिक जानकारी के अनुसार जिले में कुल आवंटित पद 6211 के विरुद्ध 4293 लोगों का नियोजन किया गया जिसके एवज में कुल 972 लोगों ने ही अपना योगदान दिया। शेष पद पर यूं ही खाली पड़े हैं। पंचायतों में इसकी स्थिति और भी दयनीय है। जिले के कुल 249 पंचायतों में 194 पंचायतों से ही अब तक नियोजन की रिपोर्ट भेजी गई है। शेष पंचायत नियोजन इकाईयों ने पूरे नियोजन को शुभ लाभ के चक्कर में लटकाकर घोर लापरवाही का परिचय दिया है। जबकि कई बार शिक्षा विभाग के पदाधिकारियों द्वारा रिपोर्ट मांगी गई है लेकिन इसका पंचायत प्रतिनिधियों पर कोई खास असर देखने को नहीं मिला। जहां तक नियोजन की बात है तो विभाग द्वारा उपलब्ध कराये गये आंकड़े से स्पष्ट हो जाता है कि नियोजन की प्रक्रिया यहां पर कितनी लचर है। नगर निगम में कुल आवंटित पद 325 के विरुद्ध 197 का नियोजन जिसमें कुल 125 लोगों ने ही योगदान दिया। इसी तरह एकमात्र नगर परिषद के लिए आवंटित पद 107 के विरुद्ध 89 नियोजित किये गये जिसमें मात्र 47 ने ही योगदान किया। इसी तरह तीन नगर पंचायतों में कुल 195 पद आवंटित के विरुद्ध 167 का नियोजन किया गया जिसमें 63 लोगों ने ही योगदान किया। कुल 20 प्रखंडों की जगह 19 प्रखंड में आवंटित पद 3306 के विरुद्ध 2515 नियोजित किये गये इसमें 504 ने ही योगदान दिया। राजगीर प्रखंड का रिपोर्ट किसी त्रुटि की वजह से नहीं भेजी गई है। इसी तरह पंचायत शिक्षक के 249 पंचायतों की जगह 194 पंचायतों का ही रिपोर्ट विभाग को सौंपी गई है। इसके लिए 2278 पद आवंटित के विरुद्ध 1329 का नियोजन किया गया जिसमें 233 ने ही योगदान किया। शेष 54 पंचायतों का रिपोर्ट अभी तक ठंडे बस्ते में कैद है। इस तरह से यदि आंकड़े पर गौर किया जाये तो अब तक नियोजितों में से मात्र 22 फीसद ही अभ्यर्थी ने शिक्षक पद पर योगदान किया है।

क्या कहते हैं अधिकारी

एक उम्मीदवारों द्वारा कई जगहों से आवेदन करने से समस्या को बढ़ावा मिला है। 
दरअसल यह पता लगाना मुश्किल हो रहा है कि आखिर कितने अभ्यर्थी कहां से आवेदन किए हैं तथा वे अंतिम रूप से योगदान कब कर पाएंगे। वैसे समय सीमा निर्धारित कर दी गई है। समय से योगदान नहीं करने वालों का नियोजन रद किया जा सकता है

-देवशील

जिला शिक्षा पदाधिकारी, बिहारशरीफ


News Sabhaar : Jagran (20.8.13)
********************************
When there is No Centralized Recruitment System happens, Such problems arises.

In The Age of Computer / Information Technology, Even Simple Websites / Banks provided Online Facility then why it not happens in State Government Recruitment.

Even Central Government adopted ONLINE SYSTE for UPSC / SSC examination then Why State Government failed to adopt such system.

A similar problem arises in UP LT Grade Female Teacher Recruitment System in 2011, Candidates applies in many Mandals / Zones in form of hardcopy application.
And their is no Online System, and therefore many candidates don't know actual happenings and ignorant of cut-off of other Mandals.
And conslling takes many rounds and might be not completed in 2 years.

Saturday, August 10, 2013

BETET : महिलाओं के खाली पदों पर बहाल होंगे पुरुष शिक्षक


BETET : महिलाओं के खाली पदों पर बहाल होंगे पुरुष शिक्षक

STET  / BETET / Bihar Teacher Recruitment / Recruitment   


पटना : राज्य में नियोजन इकाइयों की लापरवाही एवं लेट-लतीफी से 1.68 लाख प्रारंभिक शिक्षकों की नियुक्ति में मजे कीदेरी हो रही है। ऊपर से एक नई मुसीबत यह कि महिला आरक्षित सीटों के लिए उम्मीदवारों की कमी सामने आ रही है। महिला आरक्षित कुल 84 हजार पद हैं। इसके विरुद्ध मात्र 37 हजार महिला अभ्यर्थी ही उपलब्ध हो पायी हैं। इसे देखते हुए शिक्षा विभाग ने निर्णय लिया है कि शेष 47 हजार रिक्तियों को पुरुष शिक्षकों से भरा जाएगा। इस संबंध में विभागीय स्तर पर प्रस्ताव तैयार है और उस पर शिक्षा मंत्री पीके शाही से मंजूरी भीमिल गई है।
राज्य सरकार ने शिक्षक नियोजन में 50 फीसद सीट महिलाओं के लिए आरक्षित कर रखी है। मगरमहिलाओं उम्मीदवारों की कमी से करीब 65 फीसद पद खाली रह जा रहे हैं। प्रधान सचिव अमरजीत सिन्हा के मुताबिक महिला आरक्षित खाली पदों को उसी आरक्षित कोटि के पुरुष अभ्यर्थियों से भरा जाएगा। इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का आदेश भी है-यदि आरक्षित सीटों पर उम्मीदवार नहीं आते हैं तो उन पदों को सामान्य कोटि के उम्मीदवारों से भरा जाए। इसलिए प्रस्ताव पर विधि विशेषज्ञों से सलाह ली जा रही है। इसके बाद महिला आरक्षित शेष खाली पदों को पुरुष अभ्यर्थियों से भरा जाएगा। इस संबंधमें जल्द ही विभागीय निर्देश नियोजन इकाइयों को दिया जाएगा।
उनके मुताबिक शिक्षकों के कुल 1.68 लाख पदों के विरुद्ध 1.05 लाख पद भर लिये जाएंगे। इसमें सरकार का प्रयास यह है कि महिला आरक्षित पदों को हर हाल में भरा जाए। इसके लिए प्रशिक्षित अभ्यर्थियों ने सरकार से मांग भी की है कि यदि महिला आरक्षित पद खाली रहते हैं तो उन्हें मौका दिया जाए। उन्होंने उम्मीद जतायी कि आगामी 30 सितम्बर तक प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षक नियोजन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी

News Sabhaar : Jagran (11.8.13)

Saturday, July 20, 2013

RTE : शिक्षकों के लिए बेहतरीन लेख


RTE : शिक्षकों के लिए  बेहतरीन लेख 


बस स्टॉप पर एक बच्चा रो-रो कर कह रहा था, ममी मुझे स्कूल नहीं जाना। रोते-रोते वह उलटी करने लगा। मैंने उसकी मां से पूछा, इतना क्यों रो रहा है? 
उनका जवाब था, यह इसका रोज का नाटक है। स्कूल नहीं जाएगा तो कब तक मेरे पास रहेगा? 

मैंने सुझाया, नहीं, आप इससे धीरे-धीरे बहला-फुसला कर कारण पूछिए।
दो-चार दिनों के बाद जब वह महिला मिली, तो जो सुनाया, वह चौंकाने वाला था। बच्चे ने उन्हें बताया था कि उसकी मैडम होमवर्क नहीं करके लाने पर धमकी देती थीं कि मैं तुम्हें चूहा बना दूंगी। फिर एक अलमारी के पास ले जाकर रूई भरे चूहे दिखातीं और कहतीं, देखो काम न करने वाले बच्चों को मैंने चूहा बना कर रखा हुआ है। कभी-कभी शोर मचाने पर बच्चों के मुंह के पास स्टैप्लर ले जाकर उनके होंठ स्टेपल कर देने की धमकी भी देतीं।
उनींदी आंखों वाले, भूखे पेट, शिशुओं को किसी तरह ठेल-ठाल कर, बस न मिस हो जाए - इस भागमभाग में मां-बाप की हर सुबह बीतती है। उनके किसी खासव्यवहार के पीछे क्या कारण होसकता है, इस पर गौर करने की फुर्सत ही नहीं मिलती। सहमे हुए बच्चे अक्सर घर पर भी कुछ नहीं बता पाते हैं और स्कूल जाने का विरोध करने के लिए वे जो कुछ करते हैं, उन्हें हम बहानेबाजी समझते हैं।
मासूम बच्चों के प्रति कुछ अध्यापकों का व्यवहार बाल-मनोविज्ञान के एकदम विपरीत होता है। बच्चों का आत्म-सम्मान कम तीखा नहीं होता। शारीरिक सजा की आज के एजुकेशनसिस्टम में कोई जगह नहीं है। पर दंड देने के दूसरे तरीके कितने अपमानजनक और हीनभावना पैदा करने वाले हैं। कहीं पर होमवर्क न करने पर पूरी क्लासके बीच बच्चे की निकर उतारने की धमकी ही नहीं दी जाती, कपड़ा नीचे कर दिया जाता है। रोज का यह ड्रामा हेडमास्टर तक पहुंचाया जाए तो बच्चे को टी.सी. यानी स्कूल छोड़ने का तोहफा मिल जाता है।
आज स्कूल में सिर पर कूड़ादानरख कर कोने में खड़ा करना आम बात है। बच्चों की बुद्धि, रूप आकार को केंद्र बनाकर गैंडे की खाल, कुत्ते की दुम, डफर और कछुए का खिताब बच्चों की बुद्धि को सचमुच कुंद कर देता है। बड़े होकर वे या तो विदोही बन जाते हैं या अपने में सिमट कर रह जाते हैं।
वयस्क होने पर भी कई बार लोग चूहा, बिल्ली, छिपकली, कॉकरोच आदि को देखते ही चीखने लगते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि ये जीव तो स्वयं मनुष्य से डरते हैं और उनका आकार हमारे आकार से कितना छोटा है।
ऐसे लोगों से बारीकी से पूछा जाए तो इस डर का छोर सुदूर अतीत में बचपन तक जाता है। एक बच्चे के दादा अपनी बात मनवाने के लिए प्राय: उसके मुंह में कॉकरोच डालने के लिए उसके पीछे भागा करते थे। इसी तरह हर भय के पीछे छुटपन की कहानी है। एक महिला अपने ही घर में अपनी अलमारी खोलने से डरती थी। उसका विश्लेषण किया गया तो पता लगा कि बचपन में उसे डराने के लिए अलमारी में कोई भयानक पुतला रखा जाता था।
बच्चों को सुलाने के लिए मांएं अक्सर बंदर, भालू, शेर की आवाजें निकालती हैं। भूत का डर दिखाती हैं। अंधेरे में अकेला छोड़ देने का डर दिखातीहैं। ऐसे बच्चे जिंदगी भर अंधेरे से डरते हैं। भूतों की दुनिया में विश्वास करने लगते हैं। कुछ अध्यापक और मां-बाप बच्चों में हीन भावना पैदा करने के दोषी होते हैं। यदि दो भाई बहन (छोटे-बड़े) एकही स्कूल में पढ़ते हों और संयोग से एक पढ़ाई में तेज हो तो उनके टीचर कमजोर बच्चे को ताना देते हैं, 'तुम बड़े से कुछ सीखो। निकम्मे हो तुम।' घर में भी यही दोहराया जाता है।
ऐसा बच्चा अपने को नाकारा समझने लगता हैं। दूसरे, भाई से नफरत करने लगता है। तीसरे, पढ़ाई से उसका मन हट जाता है।
बी.एड. में बाल मनोविज्ञान पढ़ाया जाता है. कार्यशालाएं करवा कर बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए अध्यापक समुदाय को जागरूक बनाने की जरूरत है।
PR AAJ KAL TO LOG PAISA SE B.ED KI DEGREE KHAREEDTE HAI....

RTE : शिक्षकों के लिए बेहतरीन लेख


RTE : शिक्षकों के लिए  बेहतरीन लेख 


बस स्टॉप पर एक बच्चा रो-रो कर कह रहा था, ममी मुझे स्कूल नहीं जाना। रोते-रोते वह उलटी करने लगा। मैंने उसकी मां से पूछा, इतना क्यों रो रहा है? 
उनका जवाब था, यह इसका रोज का नाटक है। स्कूल नहीं जाएगा तो कब तक मेरे पास रहेगा? 

मैंने सुझाया, नहीं, आप इससे धीरे-धीरे बहला-फुसला कर कारण पूछिए।
दो-चार दिनों के बाद जब वह महिला मिली, तो जो सुनाया, वह चौंकाने वाला था। बच्चे ने उन्हें बताया था कि उसकी मैडम होमवर्क नहीं करके लाने पर धमकी देती थीं कि मैं तुम्हें चूहा बना दूंगी। फिर एक अलमारी के पास ले जाकर रूई भरे चूहे दिखातीं और कहतीं, देखो काम न करने वाले बच्चों को मैंने चूहा बना कर रखा हुआ है। कभी-कभी शोर मचाने पर बच्चों के मुंह के पास स्टैप्लर ले जाकर उनके होंठ स्टेपल कर देने की धमकी भी देतीं।
उनींदी आंखों वाले, भूखे पेट, शिशुओं को किसी तरह ठेल-ठाल कर, बस न मिस हो जाए - इस भागमभाग में मां-बाप की हर सुबह बीतती है। उनके किसी खासव्यवहार के पीछे क्या कारण होसकता है, इस पर गौर करने की फुर्सत ही नहीं मिलती। सहमे हुए बच्चे अक्सर घर पर भी कुछ नहीं बता पाते हैं और स्कूल जाने का विरोध करने के लिए वे जो कुछ करते हैं, उन्हें हम बहानेबाजी समझते हैं।
मासूम बच्चों के प्रति कुछ अध्यापकों का व्यवहार बाल-मनोविज्ञान के एकदम विपरीत होता है। बच्चों का आत्म-सम्मान कम तीखा नहीं होता। शारीरिक सजा की आज के एजुकेशनसिस्टम में कोई जगह नहीं है। पर दंड देने के दूसरे तरीके कितने अपमानजनक और हीनभावना पैदा करने वाले हैं। कहीं पर होमवर्क न करने पर पूरी क्लासके बीच बच्चे की निकर उतारने की धमकी ही नहीं दी जाती, कपड़ा नीचे कर दिया जाता है। रोज का यह ड्रामा हेडमास्टर तक पहुंचाया जाए तो बच्चे को टी.सी. यानी स्कूल छोड़ने का तोहफा मिल जाता है।
आज स्कूल में सिर पर कूड़ादानरख कर कोने में खड़ा करना आम बात है। बच्चों की बुद्धि, रूप आकार को केंद्र बनाकर गैंडे की खाल, कुत्ते की दुम, डफर और कछुए का खिताब बच्चों की बुद्धि को सचमुच कुंद कर देता है। बड़े होकर वे या तो विदोही बन जाते हैं या अपने में सिमट कर रह जाते हैं।
वयस्क होने पर भी कई बार लोग चूहा, बिल्ली, छिपकली, कॉकरोच आदि को देखते ही चीखने लगते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि ये जीव तो स्वयं मनुष्य से डरते हैं और उनका आकार हमारे आकार से कितना छोटा है।
ऐसे लोगों से बारीकी से पूछा जाए तो इस डर का छोर सुदूर अतीत में बचपन तक जाता है। एक बच्चे के दादा अपनी बात मनवाने के लिए प्राय: उसके मुंह में कॉकरोच डालने के लिए उसके पीछे भागा करते थे। इसी तरह हर भय के पीछे छुटपन की कहानी है। एक महिला अपने ही घर में अपनी अलमारी खोलने से डरती थी। उसका विश्लेषण किया गया तो पता लगा कि बचपन में उसे डराने के लिए अलमारी में कोई भयानक पुतला रखा जाता था।
बच्चों को सुलाने के लिए मांएं अक्सर बंदर, भालू, शेर की आवाजें निकालती हैं। भूत का डर दिखाती हैं। अंधेरे में अकेला छोड़ देने का डर दिखातीहैं। ऐसे बच्चे जिंदगी भर अंधेरे से डरते हैं। भूतों की दुनिया में विश्वास करने लगते हैं। कुछ अध्यापक और मां-बाप बच्चों में हीन भावना पैदा करने के दोषी होते हैं। यदि दो भाई बहन (छोटे-बड़े) एकही स्कूल में पढ़ते हों और संयोग से एक पढ़ाई में तेज हो तो उनके टीचर कमजोर बच्चे को ताना देते हैं, 'तुम बड़े से कुछ सीखो। निकम्मे हो तुम।' घर में भी यही दोहराया जाता है।
ऐसा बच्चा अपने को नाकारा समझने लगता हैं। दूसरे, भाई से नफरत करने लगता है। तीसरे, पढ़ाई से उसका मन हट जाता है।
बी.एड. में बाल मनोविज्ञान पढ़ाया जाता है. कार्यशालाएं करवा कर बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए अध्यापक समुदाय को जागरूक बनाने की जरूरत है।
PR AAJ KAL TO LOG PAISA SE B.ED KI DEGREE KHAREEDTE HAI....