Saturday, July 20, 2013

RTE : शिक्षकों के लिए बेहतरीन लेख


RTE : शिक्षकों के लिए  बेहतरीन लेख 


बस स्टॉप पर एक बच्चा रो-रो कर कह रहा था, ममी मुझे स्कूल नहीं जाना। रोते-रोते वह उलटी करने लगा। मैंने उसकी मां से पूछा, इतना क्यों रो रहा है? 
उनका जवाब था, यह इसका रोज का नाटक है। स्कूल नहीं जाएगा तो कब तक मेरे पास रहेगा? 

मैंने सुझाया, नहीं, आप इससे धीरे-धीरे बहला-फुसला कर कारण पूछिए।
दो-चार दिनों के बाद जब वह महिला मिली, तो जो सुनाया, वह चौंकाने वाला था। बच्चे ने उन्हें बताया था कि उसकी मैडम होमवर्क नहीं करके लाने पर धमकी देती थीं कि मैं तुम्हें चूहा बना दूंगी। फिर एक अलमारी के पास ले जाकर रूई भरे चूहे दिखातीं और कहतीं, देखो काम न करने वाले बच्चों को मैंने चूहा बना कर रखा हुआ है। कभी-कभी शोर मचाने पर बच्चों के मुंह के पास स्टैप्लर ले जाकर उनके होंठ स्टेपल कर देने की धमकी भी देतीं।
उनींदी आंखों वाले, भूखे पेट, शिशुओं को किसी तरह ठेल-ठाल कर, बस न मिस हो जाए - इस भागमभाग में मां-बाप की हर सुबह बीतती है। उनके किसी खासव्यवहार के पीछे क्या कारण होसकता है, इस पर गौर करने की फुर्सत ही नहीं मिलती। सहमे हुए बच्चे अक्सर घर पर भी कुछ नहीं बता पाते हैं और स्कूल जाने का विरोध करने के लिए वे जो कुछ करते हैं, उन्हें हम बहानेबाजी समझते हैं।
मासूम बच्चों के प्रति कुछ अध्यापकों का व्यवहार बाल-मनोविज्ञान के एकदम विपरीत होता है। बच्चों का आत्म-सम्मान कम तीखा नहीं होता। शारीरिक सजा की आज के एजुकेशनसिस्टम में कोई जगह नहीं है। पर दंड देने के दूसरे तरीके कितने अपमानजनक और हीनभावना पैदा करने वाले हैं। कहीं पर होमवर्क न करने पर पूरी क्लासके बीच बच्चे की निकर उतारने की धमकी ही नहीं दी जाती, कपड़ा नीचे कर दिया जाता है। रोज का यह ड्रामा हेडमास्टर तक पहुंचाया जाए तो बच्चे को टी.सी. यानी स्कूल छोड़ने का तोहफा मिल जाता है।
आज स्कूल में सिर पर कूड़ादानरख कर कोने में खड़ा करना आम बात है। बच्चों की बुद्धि, रूप आकार को केंद्र बनाकर गैंडे की खाल, कुत्ते की दुम, डफर और कछुए का खिताब बच्चों की बुद्धि को सचमुच कुंद कर देता है। बड़े होकर वे या तो विदोही बन जाते हैं या अपने में सिमट कर रह जाते हैं।
वयस्क होने पर भी कई बार लोग चूहा, बिल्ली, छिपकली, कॉकरोच आदि को देखते ही चीखने लगते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि ये जीव तो स्वयं मनुष्य से डरते हैं और उनका आकार हमारे आकार से कितना छोटा है।
ऐसे लोगों से बारीकी से पूछा जाए तो इस डर का छोर सुदूर अतीत में बचपन तक जाता है। एक बच्चे के दादा अपनी बात मनवाने के लिए प्राय: उसके मुंह में कॉकरोच डालने के लिए उसके पीछे भागा करते थे। इसी तरह हर भय के पीछे छुटपन की कहानी है। एक महिला अपने ही घर में अपनी अलमारी खोलने से डरती थी। उसका विश्लेषण किया गया तो पता लगा कि बचपन में उसे डराने के लिए अलमारी में कोई भयानक पुतला रखा जाता था।
बच्चों को सुलाने के लिए मांएं अक्सर बंदर, भालू, शेर की आवाजें निकालती हैं। भूत का डर दिखाती हैं। अंधेरे में अकेला छोड़ देने का डर दिखातीहैं। ऐसे बच्चे जिंदगी भर अंधेरे से डरते हैं। भूतों की दुनिया में विश्वास करने लगते हैं। कुछ अध्यापक और मां-बाप बच्चों में हीन भावना पैदा करने के दोषी होते हैं। यदि दो भाई बहन (छोटे-बड़े) एकही स्कूल में पढ़ते हों और संयोग से एक पढ़ाई में तेज हो तो उनके टीचर कमजोर बच्चे को ताना देते हैं, 'तुम बड़े से कुछ सीखो। निकम्मे हो तुम।' घर में भी यही दोहराया जाता है।
ऐसा बच्चा अपने को नाकारा समझने लगता हैं। दूसरे, भाई से नफरत करने लगता है। तीसरे, पढ़ाई से उसका मन हट जाता है।
बी.एड. में बाल मनोविज्ञान पढ़ाया जाता है. कार्यशालाएं करवा कर बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए अध्यापक समुदाय को जागरूक बनाने की जरूरत है।
PR AAJ KAL TO LOG PAISA SE B.ED KI DEGREE KHAREEDTE HAI....

RTE : शिक्षकों के लिए बेहतरीन लेख


RTE : शिक्षकों के लिए  बेहतरीन लेख 


बस स्टॉप पर एक बच्चा रो-रो कर कह रहा था, ममी मुझे स्कूल नहीं जाना। रोते-रोते वह उलटी करने लगा। मैंने उसकी मां से पूछा, इतना क्यों रो रहा है? 
उनका जवाब था, यह इसका रोज का नाटक है। स्कूल नहीं जाएगा तो कब तक मेरे पास रहेगा? 

मैंने सुझाया, नहीं, आप इससे धीरे-धीरे बहला-फुसला कर कारण पूछिए।
दो-चार दिनों के बाद जब वह महिला मिली, तो जो सुनाया, वह चौंकाने वाला था। बच्चे ने उन्हें बताया था कि उसकी मैडम होमवर्क नहीं करके लाने पर धमकी देती थीं कि मैं तुम्हें चूहा बना दूंगी। फिर एक अलमारी के पास ले जाकर रूई भरे चूहे दिखातीं और कहतीं, देखो काम न करने वाले बच्चों को मैंने चूहा बना कर रखा हुआ है। कभी-कभी शोर मचाने पर बच्चों के मुंह के पास स्टैप्लर ले जाकर उनके होंठ स्टेपल कर देने की धमकी भी देतीं।
उनींदी आंखों वाले, भूखे पेट, शिशुओं को किसी तरह ठेल-ठाल कर, बस न मिस हो जाए - इस भागमभाग में मां-बाप की हर सुबह बीतती है। उनके किसी खासव्यवहार के पीछे क्या कारण होसकता है, इस पर गौर करने की फुर्सत ही नहीं मिलती। सहमे हुए बच्चे अक्सर घर पर भी कुछ नहीं बता पाते हैं और स्कूल जाने का विरोध करने के लिए वे जो कुछ करते हैं, उन्हें हम बहानेबाजी समझते हैं।
मासूम बच्चों के प्रति कुछ अध्यापकों का व्यवहार बाल-मनोविज्ञान के एकदम विपरीत होता है। बच्चों का आत्म-सम्मान कम तीखा नहीं होता। शारीरिक सजा की आज के एजुकेशनसिस्टम में कोई जगह नहीं है। पर दंड देने के दूसरे तरीके कितने अपमानजनक और हीनभावना पैदा करने वाले हैं। कहीं पर होमवर्क न करने पर पूरी क्लासके बीच बच्चे की निकर उतारने की धमकी ही नहीं दी जाती, कपड़ा नीचे कर दिया जाता है। रोज का यह ड्रामा हेडमास्टर तक पहुंचाया जाए तो बच्चे को टी.सी. यानी स्कूल छोड़ने का तोहफा मिल जाता है।
आज स्कूल में सिर पर कूड़ादानरख कर कोने में खड़ा करना आम बात है। बच्चों की बुद्धि, रूप आकार को केंद्र बनाकर गैंडे की खाल, कुत्ते की दुम, डफर और कछुए का खिताब बच्चों की बुद्धि को सचमुच कुंद कर देता है। बड़े होकर वे या तो विदोही बन जाते हैं या अपने में सिमट कर रह जाते हैं।
वयस्क होने पर भी कई बार लोग चूहा, बिल्ली, छिपकली, कॉकरोच आदि को देखते ही चीखने लगते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि ये जीव तो स्वयं मनुष्य से डरते हैं और उनका आकार हमारे आकार से कितना छोटा है।
ऐसे लोगों से बारीकी से पूछा जाए तो इस डर का छोर सुदूर अतीत में बचपन तक जाता है। एक बच्चे के दादा अपनी बात मनवाने के लिए प्राय: उसके मुंह में कॉकरोच डालने के लिए उसके पीछे भागा करते थे। इसी तरह हर भय के पीछे छुटपन की कहानी है। एक महिला अपने ही घर में अपनी अलमारी खोलने से डरती थी। उसका विश्लेषण किया गया तो पता लगा कि बचपन में उसे डराने के लिए अलमारी में कोई भयानक पुतला रखा जाता था।
बच्चों को सुलाने के लिए मांएं अक्सर बंदर, भालू, शेर की आवाजें निकालती हैं। भूत का डर दिखाती हैं। अंधेरे में अकेला छोड़ देने का डर दिखातीहैं। ऐसे बच्चे जिंदगी भर अंधेरे से डरते हैं। भूतों की दुनिया में विश्वास करने लगते हैं। कुछ अध्यापक और मां-बाप बच्चों में हीन भावना पैदा करने के दोषी होते हैं। यदि दो भाई बहन (छोटे-बड़े) एकही स्कूल में पढ़ते हों और संयोग से एक पढ़ाई में तेज हो तो उनके टीचर कमजोर बच्चे को ताना देते हैं, 'तुम बड़े से कुछ सीखो। निकम्मे हो तुम।' घर में भी यही दोहराया जाता है।
ऐसा बच्चा अपने को नाकारा समझने लगता हैं। दूसरे, भाई से नफरत करने लगता है। तीसरे, पढ़ाई से उसका मन हट जाता है।
बी.एड. में बाल मनोविज्ञान पढ़ाया जाता है. कार्यशालाएं करवा कर बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए अध्यापक समुदाय को जागरूक बनाने की जरूरत है।
PR AAJ KAL TO LOG PAISA SE B.ED KI DEGREE KHAREEDTE HAI....

BETET : शिक्षक नियोजन: प्रथम चरण के बाद जिप में 179 सीट खाली


BETET : शिक्षक नियोजन: प्रथम चरण के बाद जिप में 179 सीट खाली


STET  / BETET / Shikshak Niyojan Bihar Teacher Recruitment / Plus 2 Shikshan Niyojan Recruitment  



- उच्च विद्यालयों में 106 अभ्यर्थियों ने किया योगदान

-जिले में हैं कुल 285 सीटें

जागरण प्रतिनिधि, जमुई : शिक्षक नियोजन के तहत जिला परिषद के उच्च विद्यालयों में प्रथम चरण के बाद 179 सीटें खाली हैं। जानकारी के अनुसार जिला परिषद की कुल 285 सीटों के विरुद्ध नियोजन प्रक्रिया के प्रथम चरण में 217 अभ्यर्थियों को नियोजन पत्र भेजा गया था। जिसके बाद वर्तमान में 106 अभ्यर्थियों ने उच्च विद्यालयों में अपना योगदान दिया है। विभाग द्वारा सभी उच्च विद्यालयों से शिक्षकों के योगदान तथा त्यागपत्र देने का ब्यौरा विद्यालय वार एकत्र किया जा रहा है ताकि दूसरे चरण के शिक्षक नियोजन की प्रक्रिया शुरु की जा सके। 217 अभ्यर्थियों को नियोजन पत्र भेजे जाने के बाद 106 अभ्यर्थियों ने ही अपना योगदान दिया है जिस कारण जिला परिषद में 179 रिक्तियां शेष रह गई हैं।

प्रथम चरण के बाद विषयवार रिक्ति का ब्योरा

विषय सृजित वर्तमान में योगदान देने वालों

पद रिक्त पद की संख्या

हिन्दी 36 20 16

संस्कृत 33 19 14

अंग्रेजी 32 24 08

विज्ञान 39 22 17

गणित 36 25 11

एसएसटी 76 43 33

श. शिक्षा 07 03 04

उर्दू 26 23 03


News Sabhaar : Jagran (16,7,13)

Plus 2 Shikshak Niyojan : 15 अक्टूबर तक नियोजित होंगे प्लस-टू विद्यालयों में शिक्षक


Plus 2 Shikshak Niyojan : 15 अक्टूबर तक नियोजित होंगे प्लस-टू विद्यालयों में शिक्षक



STET  / BETET / Shikshak Niyojan Bihar Teacher Recruitment / Plus 2 Shikshan Niyojan Recruitment  


पटना : आगामी 15 अक्टूबर तक प्लस-टू शिक्षकों की नियोजन प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव अमरजीत सिन्हा ने मंगलवार को बताया कि राज्य के उच्च माध्यमिक विद्यालयों में सृजित कुल 41871 पदों के विरुद्ध प्रशिक्षित एवं माध्यमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा (एसटीईटी) में उत्तीर्ण अभ्यर्थियों से आवेदन लिए जा रहे हैं। 26 जुलाई तक नियोजन इकाइयों में आवेदन जमा होंगे।

प्रधान सचिव के मुताबिक एसटीइटी में 15 हजार अभ्यर्थी सफल हुए हैं। इसलिए खाली पदों के विरुद्ध उत्तीर्ण सभी संबंधित अभ्यर्थियों का नियोजन पूरा कर लिया जाएगा। फिलहाल जिन नियोजन इकाइयों में देर से आवेदन लेने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई है, वहां 26 जुलाई तक आवेदन लेने का निर्देश दिया गया है। शिक्षक पात्रता परीक्षा में उत्तीर्ण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अत्यंत पिछड़ा वर्ग के अप्रशिक्षित अभ्यर्थियों को प्लस-टू शिक्षक नियोजन हेतु अवसर प्रदान किया गया है।

उनके अनुसार वर्ष 2006 से जून 2013 तक जिलों में स्थापित अपीलीय प्राधिकार में शिक्षक नियोजन से संबंधित 36873 मामले (शिकायत व अपील) दायर हुए। इनमें कुल 34714 मामलों का निष्पादन किया जा चुका है। वहीं 3.42 लाख प्रारंभिक शिक्षकों की सेवा से संबंधित आंकड़ों को कंप्यूटरीकृत किया गया है, जिसे पहली अक्टूबर को विभागीय वेबसाइट पर सार्वजनिक किया जाएगा। इसका मकसद शिक्षकों की सेवा इतिहास संबंधी सूचना आम लोगों के बीच पहुंचाना है


News Sabhaar : jagran (16.7.13)

STET / BETET प्राधिकार के फैसले पर विभागीय कसरत शुरू


STET  / BETET प्राधिकार के फैसले पर विभागीय कसरत शुरू


STET  / BETET / Shikshak Niyojan Bihar Teacher Recruitment / Plus 2 Shikshan Niyojan Recruitment  


 
सीतामढ़ी, संवाददाता : विभागीय निर्देश के आलोक में जहां शिक्षक नियोजन इकाई ने दो शिक्षकों का नियोजन रद कर दिया हैं, वहीं जिला शिक्षक नियोजन अपीलीय प्राधिकार ने आवेदक के पक्ष में फैसला सुनाया हैं। प्राधिकार के फैसले के बाद शिक्षक अभ्यर्थियों के फिर से नियोजन के लिए विभागीय कसरत शुरू हो गयी हैं। पुन: नियोजन को लेकर जिला शिक्षा पदाधिकारी ने विभाग को मार्गदर्शन के लिए पत्र भेजा हैं।

क्या हैं? मामला

प्रखंड शिक्षक नियोजन इकाई परसौनी ने वर्ष 2006 में प्रखंड शिक्षक के पद पर राजीव कुमार को मध्य विद्यालय बेनीपुर व कंतलाल बैठा को मध्य विद्यालय कठौर गोट के लिए नियोजन पत्र निर्गत कर दिया। नियोजन पत्र के अलोक में दोनों शिक्षक अभ्यर्थियों ने 11 दिसम्बर 2006 को अपने-अपने विद्यालयों में योगदान कर कार्य शुरू कर दिया। दोनों अभ्यर्थियों का बीएड डिग्री भारतीय शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश लखनऊ द्वारा जारी किया गया था। योगदान के बाद तेरह वैसे संस्थानों की सूची जारी की गई, जिसे शिक्षक नियुक्ति में शामिल नहीं किया जाना था। प्रधान सचिव के पत्रांक 998 दिनांक 5 अगस्त 2010 द्वारा जारी सूची में भारतीय शिक्षा परिषद लखनऊ द्वारा शिक्षक प्रशिक्षण डिग्री भी शामिल था। विभागीय निर्देश के आलोक में नियोजन इकाई ने उक्त दोंनो शिक्षकों का नियोजन रद कर दिया। मामला जिला शिक्षक नियोजन अपीलीय प्राधिकार पहुंचा।

प्राधिकार ने अपने पत्रांक 17 दिनांक 26 फरवरी 2013 में बताया है कि उच्च न्यायालय पटना ने सीडब्ल्यूजेसी नं.14813 2006 में पारित आदेश दिनांक 31 मई 2007 में भारतीय शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश लखनऊ को मान्य संस्थान माना हैं। उक्त आवेदक को नियोजन का आदेश दिया हैं। इसके अलावे विभिन्न जनपदों में इसी संस्थान से प्रदत्त प्रमाण पत्र पर शिक्षक नियुक्त हुए हैं। अत: भारतीय शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश लखनऊ को मान्य संस्था मानते हुए उपरोक्त दोनों आवेदकों के नियोजन रद करने संबंधी आदेश को निरस्त करते हुए उन्हें पुन: नियोजित करने का आदेश दिया जाए। प्राधिकार के आदेश पर पूछे जाने पर जिला शिक्षा पदाधिकारी कुमार सहजानंद ने बताया कि इस संबंध में विभाग से मार्गदर्शन मांगा गया हैं। दोनो शिक्षक अभ्यर्थियों को पुन : नियोजित नहीं किया जा सका हैं

News Sabhaar : Jagran (16.7.13)